Sunday, 29 January 2012

महिमा कुत्ते की: बाबा ताड़ीवाला



  नवाब अब्दुर्रहीम खान खाना मध्यकालीन भारत के एक महान कवि थे. एक दोहे में  उसने कहा है:
 रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली ना प्रीत,
 काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँति विपरीत !
  अर्थात, कवि रहीम कहते हैं कि जैसे कुत्ते का काटना और चाटना, दोनों ही मनुष्य के लिए हानिकारक है, ठीक वैसे ही ओछे व्यक्तियों से मित्रता और दुश्मनी, दोनों ही भली नहीं है.
     रहीम अकबर के समय थे, रहीम के दोहे से स्पष्ट है कि उन दिनों भी कुत्तों को हेय दृष्टि से देखा जाता था. इसके बाद अंग्रेज यहाँ आये. उनके राज  में तो वे हिंदुस्तानियों को इंडियन डॉग कह कर उनका तिरष्कार करते थे. अंग्रेज तो चले गए, लेकिन अपनी अंग्रेजियत यहाँ छोड़ गए. फलस्वरूप यहाँ के अमीर लोगों ने अंग्रेजी यानि कि विदेशी कुत्तों को ही पालना शुरू किया, जैसे  एल्शेसियन, डोबरमेंन, स्पेनियल, बुलडॉग.लेब्राडोर इत्यादि. वे उन्हें हेय-दृष्टि से नहीं देखते; बल्कि  इन्हें पालना अब शान की बात समझी जाने लगी.है. उनका नाम भी वे अंग्रेजी में ही रखना पसंद करते हैं, जैसे टॉमी, टाइगर, जिमी इत्यादि इत्यादि. हिंदी के महान कथाकार प्रेमचंद ने अपनी एक उकृष्ट कहानी "पूस की रात में" कुत्ते का नाम "जबरा" रखा था, लेकिन भूरे साहबों को अब इस तरह के नाम रास नहीं आते !..... और तो और, उन्हें अंग्रेजी आये न आये, वे कुत्तों से अंग्रेजी में ही बातें करते हैं, टॉमी, कम, गो, टॉमी सीट डाउन. वगैरह वगैरह. उन्हें कुत्ता नहीं, बल्कि डॉगी कहा जाता है.
   इस सन्दर्भ में ये भी एक गौर करने वाली बात है कि आम हिन्दुस्तानी मुख्यतः तीन परिस्थिति में अंग्रेजी में बात करता है; प्रथम जब वह नशे में होता है, दूसरा, जब वह क्रोधित होता है  और तीसरा, जब वह अपने कुत्ते से बात करता है !
     ये विदेशी कुत्ते बड़े ही भाग्यशाली होते हैं उन्हें बिस्किट और डॉग-फ़ूड खिलाया जाता है, जूठन खाना उनके शान के खिलाप है. उन्हें शेम्पू से नहलाया जाता है, और ब्रश या कंघी किया जाता है. वे कालीन में सोते हैं. उनके गले में महंगे चमड़े की पट्टी बंधी रहती है उसमे लगे कीमती चेन को पकड़कर अमीर बुज़ुर्ग ट्रेक-सूट पहन कर उन्हें सुबहो-शाम पार्क में या सडकों में घुमाने ले जाते हैं और उन्हें नित्य-क्रिया से निवृत कराते हैं. अमीर लोगो की पत्नियाँ और लड़कियां छोटे-छोटे खूबसूरत अंग्रेजी कुत्तों को गोद में लेकर पुचकारती, दुलारती रहती हैं. उन्हें क्लबों या फेशन शो में ले जाते है. उनके बच्चे लॉन में इन कुत्तों के साथ खेलते हैं और छोटी-छोटी गेंदे दूर-दूर  फेंकते हैं. ये डॉगी बड़ी तत्परता के साथ उन्हें अपने मुंह में दबा कर उनके पास ले आते हैं. कुछ डॉगी तो  सुबह गेट के पास फेंके गए अखबार भी अपने मालिकों तक पहुंचा देते हैं.
   लेकिन जो भी हो, इन अंग्रेजी कुत्तों की प्रवृति अपने अमीर मालिकों जैसी ही काटखाऊ होती है. उनके कोठियों के गेट के सामने अक्सर बोर्ड दिख जाता है, जिसमें लिखा रहता है, कुत्ते या कुत्तों से सावधान. उसे देख कर बाबा हमेशा ही सावधान हो जाता है, लेकिन कुत्तों से नहीं, बल्कि उनके मालिकों से ! क्योंकि, उनकी पहुँच बहुत ही ऊँची-ऊँची जगहों पर होती है और वे कुछ भी कर सकते है, या औरों से करवा सकते हैं !
     अंग्रेजी या बिदेशी कुत्तों की खाशियत ये भी है कि वे जासूसी भी कर लेते हैं. इनकी घ्राण-शक्ति बहुत ही तेज होती है. सूंघकर चोरों या अपराधियों को पकड़ना, चरस, गांजा, भांग या बम का पता लगाना उनके गुणों में शुमार है.पता नहीं क्यों हमारी सरकार आये दिन हो रहे घोटालों का पर्दाफाश करने के लिए इन विदेशी कुत्तों की सहायता नहीं लेती !
   इसके अलावा एस्कीमों, उत्तरी ध्रुव  में गवेषणा करने वाले  वैज्ञानिकों या साहसिक अभियानों में जाने वाले यात्रियों की गाडियां (sled या sledge) कुत्ते ही खींचते हैं. विदोशों में वे अंधे व्यक्तियों को रास्ता भी दिखाते है. २२ जुलाई, सन् १९५१ में तो रूसियों ने दो कुत्तों को अंतरिक्ष भेज दिया था और वे प्रथम प्राणी थे जो सकुशल जीवित धरती पर लौट आये थे. उनके पहले भेजे गए बन्दर उतने सौभाग्यशाली नहीं थे.
   ये तो रही विदेशी अंग्रेजी कुत्तों की बातें. अब रही देशी कुत्तों की बातें ! हमारे देशी कुत्ते उनके जैसे शौभाग्यशाली नहीं है. उन्हें सिर्फ गांवों में ही पाला जाता है, और उन्हें खुला ही रखा जाता है क्योंकि वे सिर्फ  भौंकते हैं काटते नहीं.खतरा देखते ही वे दुम दबा कर  भाग खड़े होते हैं. कुत्ते की नींद बहुत कच्ची होती है और जरा सी आहट पर वे चौक कर उठ जाते हैं और बेतहाशा भौंकने लगते है.  हाँ, अंग्रेजी कुत्तों की तरह ही इनकी भी अपने मालिकों के प्रति वफादारी बेमिसाल है. लेकिन ये बेचारे जूठन या बची-खुची हुई भोजन पर ही गुजारा कर लेते हैं
     शहरों में कुत्ते गलियों में रहते है और कहा जाता है कि अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है. फिर भी इसे एक तुच्छ प्राणी के रूप में ही देखा जाता है. इस प्राणी पर मनुष्य द्वारा बनाये गए मुहावरों से यह साफ़ जाहिर होता है. जैसे कुत्ते की दुम हमेशा टेढ़ी ही रहती है,. "दुम दबा कर भागना". “कुत्ते की तरह दुम हिलाना या तलवे चाटना”, हाथी चले बाजार, कुत्ते भौंके हज़ार, कुत्ते की मौत मरना या मारना,” गली के कुत्ते. इत्यादि इत्यादि. गधे और सूकर ही दो अन्य प्राणी हैं, जिन्हें तुच्छ समझा जाता है.
   साधारणतः देशी कुत्ते गली में रहते हैं. कुत्ते गली में रहेंगे तो जाहिर है कि ये मरेंगे भी. लेकिन अक्सर इनकी मौत बहुत ही दर्दनाक होती है. इसलिए मुश्किल हालातों में किसी दुष्ट या अपराधी के मरने या पुलिस की गोली का शिकार होने पर लोग कहते है, वह कुत्ते की मौत मर गया या मारा गया. बाबा को यह सुन कर बड़ी दया आती  है. उन पर तरस आता है.
    फिर भी, यहाँ तक तो सब ठीक-ठाक है. हिंदी फिल्मों का एक नायक तो मौका मिलते ही चिल्ला-चिल्ला कर विलेन से  कहता रहता है, कुत्ते, कमीनेमैं तुम्हारा खून पी जाऊँगा, मैं तुम्हें जिन्दा नहीं छोडूंगा. सुनकर बाबा को शक है कहीं बचपन में उसे किसी कुत्ते ने  काट न खाया हो. कुत्ते की प्रति इतनी दुर्भावना क्यों? कुत्ता कुत्ता होता है, उसकी तुलना एक कमीना से नहीं की जा सकती. यह हो एक वफादार जानवर है, भले ही उसकी दुम टेढ़ी ही क्यों न हो, वह मनुष्य का एक परम मित्र है. किसी की महबूबा भले ही उसे धोका दे दे, एक कुत्ता अपने मालिक को कभी नहीं छोड़ता, दुःख हो या सुख, वह हमेशा साथ देता है.

     बेचारे कुत्ते कभी-कभी पागल भी हो जाते है. कहते हैं कि कुत्ता जब पागल हो जाता है तो उसे गोली मार दी जाती है. लेकिन बाबा ने न तो किसी पागल कुत्ते को देखा है और न उन्हें गोली मारे जाते हुए.
  पागल कुत्ते के काटने से जल-आतंक नामक लाइलाज एवं जानलेवा बिमारी हो जाती है. कुत्ते के काटने पर इस बिमारी से बचने के लिए कई इंजेक्शन लेने पड़ते है, जो बहुत ही महंगे और दर्द-भरे होते है. इसलिए कुत्तों से बच कर रहने में ही भलाई है.
   हमारे यहाँ के कुत्ते बारिश के मौसम के बाद कुछ हफ़्तों के लिए एकदम बेकाबू और असंयमी हो उठते है. शहर में तो वे स्वतंत्र होते ही हैं; गाँवों  में अपने मालिकों को छोड़कर जी-जान से कुत्तियों के पीछे दिन-रात पड़े रहते हैं, उनसे प्रणय-निवेदन करते है, अपने विशेष अंदाज़ में, मानो वे उनसे कहते हों, तो क्या लॉक कर दिया जाये? कुतियों से सहमति मिलने पर वे प्रणय क्रिया में लिप्त हो जाते है .उन्हें देख कर बाबा को पुराने जमाने का एक लोकप्रिय गाना याद आ जाता है,
    लागि छुटे न, अब तो सनम,
    चाहे जाए जियरा, तेरी कसम...
    जो सौभाग्यशाली नहीं होते वे एक मौका के लिए दुसरे कुत्तों से लड़ते रहते हैं! अंग्रेजी कुत्ते शायद इस मामले में अपने देशी बंधुओं जैसे भाग्यशाली नहीं होते. उन्हें अपने मालिकों या मालकिनो पर ही निर्भर रहना पड़ता है कि कब उन्हें उपयुक्त साथी के पास ले जाया जाए! क्योंकि उनके धुरंधर मालिकों को इन अंग्रेजी कुत्तों के भावी नस्ल यानि कि उनके "पेडिग्री (Pedigree)" की भी चिंता लगी रहती है. बाबा का निवेदन है कि ऐसे मौसम में कुत्तों को कभी भी बाँध कर नहीं रखना चाहिए, वर्ना ये कुत्ते आपको भौंक भौंक कर बद्-दुआ देंगे.. दुश्मन है  ज़माना...ठेंगे से....आजकल तो  अंतरजातीय विवाह भी धडल्ले से होने लगे हैं....तो पालतू अंग्रेजी कुत्तों के साथ से ये भेदभाव क्यों? बाबा के लिए यह एक ज्वलंत प्रश्न, यक्ष के एक कठिन प्रश्न की तरह मुंह बाएं खड़ा है !
    कुत्ता-कुत्तिया मिलन के करीब तीन महीने बाद कुतिया ५-७ अदद पिल्लों को जन्म देती है जो बहुत ही खूबसूरत लगते है! लेकिन हाय रे उनकी किस्मत ! मनुष्य कुत्ते के पिल्लै शब्दों को एक गाली के तौर पर ही उपयोग करते हैं. अंग्रेजी में तो और भी भद्दी गालियाँ हैं, जैसे Son of a bitch ! बहुत बे-इंसाफी है ! सरासर अन्याय है ! गनीमत है कि हमारे देश की एक महिला राजनीतिग्यं जानवरों की, शायद विशेषकर कुत्तों की हितों की रक्षा के लिए प्रयत्नशील हैं. यह कुत्तों की सुखद भविष्य सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है.

    चाहे को भी हो, तुलनात्मक दृष्टि से यदि कुत्तों के गुणों और अवगुणों को देखा और परखा जाये, तो उनके गुण उनके अवगुणों पर भारी पड़ते है. भले ही उसकी दुम टेढ़ी ही रहती हो, भले ही यदा-कदा चाटता और काटता हो, कुत्ता एक बहुत ही शानदार जीव है, एक सुन्दर प्राणी है. उनके प्रति जो हमारी दुर्भावनाएं हैं, उन्हें हमें त्याग देनी चाहिए. कहते हैं कि घूरे के भी दिन फिरते है, कुत्तों के भी अच्छे दिन जरूर आयेंगे. अंग्रेजी में तो वैसे भी एक कहावत है, Every dog has its day !
    हमें ये कभी नहीं भूलनी चाहिए कि कुत्ता ही एकमात्र प्राणी है जो धर्मराज युधिष्ठिर के साथ सशरीर स्वर्ग गया था! मनुष्य के लिए तो मरकर भी स्वर्ग में जाने की कोई गारंटी नहीं है !
(समाप्त: लेखक- बाबा ताड़ीवाला.)

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