चुड़ैल.
एक सुनसान रास्ते के किनारे, इमली के पेड़ पर एकखतरनाक चुड़ैल रहती थी.कोई भी नौजवान व्यक्ति ,जो उस रास्ते से गुजरता था, चुड़ैल पकड़कर उसका खून पी जाती थी.लेकिन वह बच्चों और बूढों को कुछ नहीं करती थी.
एक दिन अचानक कार्यवश एक वृद्ध व्यक्ति को उस रास्ते से जाना पड़ गया.जैसे ही वह इमली के पेड़ के नीचे पहुंचा ,चुड़ैल छम से पेड़ से नीचे कूदी और उस ने बूढ़े को पकड़ लिया और कहा, ”बुड्ढे ,मैं तुमहारा खून पियूंगी.” वृद्ध ने कहा,
”चुड़ैल जी ,मैंने तो सुना था की आप सिर्फ जवान लोगों का गर्म खून पीना पसंद करती हैं,मैं तो वृद्ध हूँ .मेरा खून भी ठंडा पड़ गया है, अतः मुझे छोड़ दीजिए.”
चुड़ैल चिल्लाई ,” चुप बुड्ढे ! आज मुझे कोल्ड ड्रिंक पीने का मूड कर रहा है.”
मनोविचार? बस... बस !
कुछ बड़े शहरों में लोकल बस कुछ बस-स्टॉपों पर रुकने के बजाय एकदम धीमी हो जाती है और लोग उसी में चढ़ते या उतरते है.जब एक स्टॉप पर बस नहीं रुकी तो सबसे पीछे वाली सीट से एक महिला ऊँची आवाज में चिल्लाई’ ”ड्राईवर, गाडी रोको, मैं कपड़े उतारूंगी.” सभी यात्रियों की नज़र एक साथ पीछे की और मुडी. सबों ने देखा कि एक धोबिन, कपडे की बड़ी सी गठरी लिए बस से उतरने के लिए तैयार खड़ी थी!
मुर्गा.
एक व्यक्ति अपने एक मित्र के पास, जो गांव का मुखिया भी था, जब कोई कार्यवश पहुंचा, तो उसने देखा की वह आंगन में चौकी पर बैठ कर रोटी खा रहा था. साथ ही साथ रोटी के छोटे छोटे टुकड़े तोड़कर सामने घूम रहे एक मुर्गे को भी खिला रहा था.
उत्सुकतावश उसने उससे पूछा. ”क्या बात है भई, तुम मुर्गे को रोटी क्यों खिला रहे हो ?”
मित्र ने जवाब दिया, ”मैं रोटियां हमेशा मुर्गे के साथ ही खाता हूँ, कोई शक?”
सफर !
हावड़ा स्टेसन से एक ट्रेन दिल्ली के लिए रवाना हुई.एक-दो घंटे बीतने पर भी एक डिब्बे में बैठे हुए यात्रियों में से कोई भी एक दूसरे से बातचीत नहीं कर रहा था. आसनसोल स्टेसन पहुँचने पर एक सरदारजी से चुप रहा नहीं गया, उसने सामने के बर्थ पर बैठे दूसरे सरदार जी से पूछ ही डाला,”सरदारजी, आपने कित्त्थे जाना है?”
“मैं तो दिल्ली जा रहा हूँ जी.” दूसरे ने जवाब दिया.
“मैं भी दिल्ली जा रहा हूँ, वैसे आप दिल्ली में कहाँ रहते है?” पहले ने सवाल किया.
“मैं हरिनगर में क्लोक टावर के पास रहता हूँ”
“अरे वाह! मैं भी तो वहीँ रहता हूँ.” पहले सरदारजी ने कहा.,
”अच्छा, आप कौन से ब्लाक में रहते हो?”
“बी. ब्लाक में जी.”
“बी.ब्लाक में तो मैं भी ही रहता हूँ. ज़रा फ्लैट न. तो बताइए.”
“मैं एम्.जी.आई फ्लैट न.१३ में रहता हूँ जी.” दूसरे ने जवाब दिया.
“बल्ले बल्ले, अरे यार,ये तो कमाल हो गया, मैं भी उसी फ्लैट में रहता हूँ, मेरा नाम मोहन सिंह है, तुम सोहन सिंह तो नहीं?”
“हाँ बिलकुल सही.” दूसरे ने कहा और वे एक-दूसरे से गले मिलने लगे.
सभी यात्री उत्सुकतावश उन दोनों को देखने लगे.पास बैठे एक यात्री ने पूछ ही लिया, ”सरदारजी आप दोनों एक ही जगह ,एक ही फ्लेट में रहते हैं और एक-दूसरे को नहीं जानते?”
“भाई साहब, जानता कौन नही है, ये तो मेरा छोटा भाई है जी. दरअसल, ट्रेन में कोई कुछ बात ही नहीं कर रहा था, इसलिए मैंने सोचा, क्यों न हम आपस में ही गल कर लें, कमबख्त टाइम भी पास हो जायेगा और सफर भी अच्छी कटेगी” बल्ले, बल्ले !